अपेक्षा एक बहुत ही प्यारी लड़की थी उसके माता पिता बहुत गरीब थे। फिर भी वे दयालु थे। वही गुण अपेक्षा में आ गया था। वह जिस किसी को मुसीबत में देखती तो उसकी मदद करती थी। उसकी शादी नवीन नाम के लड़के से हुई। वह भी गरीब परिवार का था। नवीन और उसके माता पिता सभी लोग मजदूरी करने जाते थे। और उसी सी उनकी गुजर होती थी यहां भी अपेक्षा का वही हिसाब था अगर कोई उसके पास माँगने आ जाता तो वह उसे दे देती कभी कोई पड़ोसन आ जाती और कहती
पड़ोसन – बहन तुम्हारे पास थोड़ी चीनी होगी? आज हमारे यहाँ चीनी खत्म हो गई है मेरा बेटा दूध के लिए रो रहा है वह ऐसे दूध ही नहीं पीता।
तो वह उसको कटोरी में चीनी ऐसे ही दे देती। कभी कोई और पड़ोसन आ जाती और कहती
पड़ोसन 2 – बहू कुछ रुपये उधार दे दो मैं बच्ची की दवा देने जा रही हूँ मेरे पास नहीं है मैं तुम्हें वापस कर जाऊँगी बाद में।
तो अपेक्षा दे देती। उसकी सास उसे डांटती
सास – तुमने क्या धर्मशाला खोल रखा है। हमलोग कौन से अमीर है कोई न कोई तुमने माँगने चला आता है। और तुम उसे दे देती हो।
फिर ऐसा होने लगा कि अपेक्षा सबके सामने किसी को कुछ नहीं देती लेकिन फिर चुपके से दे देती थी। पूरे मौहल्ले के औरतें जब इक्ट्ठे होकर जब बातचीत करती तो कहती ऐसी बहू हमने कभी नहीं देखी है। वह तो बहुत अच्छी है इनके घर में तो लक्ष्मी आ गयी है। लेकिन बेचारी बहुत तकलीफ भोग रही है।
Garib ka dil – गरीब का दिल | Emotional Moral Story | hindi stories | stories in hindi | kahaniya
अपेक्षा के इस भावना से उसकी सास और नवीन उससे बहुत नाराज हो जाते थे। एकबार ऐसा हुआ कि लगातार पानी बरस रहा था सब लोग मजदूरी करने गये। वे बाजार में खड़े थे और कोई काम नहीं मिल रहा था। फिर सब लोग लौट आये। सभी को काफी भूक लग रही थी | कई दिनों तक उनको कोई काम नहीं मिला वे बाजार जाते खड़े रहते और घर वापस लौट आते। जो कुछ घर में रखा था वो पहले ही खत्म हो गया था। अब घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था। वे सब बहुत भूखे बैठे थे और कह रहे थे कि
सास – हे भगवान आज क्या खायेगें इतनी जोर से भुख लगी है आज घर में कुछ भी नहीं है आज मजदूरी नहीं मिली तो आज खाना भी नहीं मिलेगा। यहाँ तो रोज कुआँ खोदो रोज पानी पियो वाली हालत है।
तभी उसकी पड़ोसन पुष्पा आ गयी कुछ माँगने,
पुष्पा – अरे भाभी उदास क्यों हो क्या हुआ,
अपेक्षा – आज हमारे यहाँ कुछ हैं ही नहीं। इतना सुनते ही पुष्पा अपने यहाँ गयी और दाल, चावल और सब्जी ले आयी।
पुष्पा – अभी खाना बना लो तुमने हमारी बहुत मदद की थी अब अपेक्षा ने चुल्हा जलाया। पहले दाल, चावल और सब्जी बनाई और रोटियाँ सेकने लगी।
अपेक्षा – अम्माजी आइये खाना खा लीजिए, सबलोग खाना खाने के लिए बैठे ही थे कि बाहर से आवाज आयी
बूढी औरत – क्या इस गरीब के लिए कुछ है मैं बहुत जोर की भूखी हूँ
अपेक्षा ने बाहर निकल कर देखा तो एक बुढ़ी औरत खड़ी थी
बूढी औरत – बेटी बहुत जोर की भूख लगी है मुझे चक्कर आ रहा है मुझसे चला ही नहीं जा रहा मुझे कुछ खाने के लिए दे दो बेटी
अपेक्षा चक्कर में पड़ गयी खाना तो थोड़ा सा ही है। जो इतने लोगों के लिए भी पूरा नहीं है वह सोचने लगी हे भगवान मैं क्या करूँ इन बुढ़ी औरत को खाना तो देना ही चाहिए। इतनी कमजोर है भूखी भी है और कमजोर भी है। इन्हें खाना दिये बगैर मैं इन्हें कैसे लौटा सकती हूँ तब तक उसकी सास बाहर आकर बोली
सास – खाना वाना कुछ नहीं है यहाँ। और बहू तुम केवाड़ बन्द कर दो ज्यादा चक्कर में पड़ा करो हाँ। बूढी औरत – बेटी मुझ पर थोड़ी दया करो मैं बहुत दु:खी हूँ आज तो लगता है भूख के मारे आज मेरे प्राण निकल जायेंगे।
ऐसा कहकर वह वही बैठ गयी और आँसू बहाने लगी। अपेक्षा दौड़ कर आयी और अपने सास से बोली अपेक्षा – अम्मा उन्हें खाना दे दो वो बहुत भुखी है कही ऐसा न हो कि उन्हें कुछ हो जाये। अपेक्षा की सास ने उन्हें डांटा
सास – हमारी तुम्हें परवाह नहीं है और वो भिखारन कहाँ से चली आयी तो उसकी परवाह है।
अपेक्षा – पर अम्मा सरा सोचो हमें भी तो दो दिन हो गये कुछ नहीं खाया है हमको भी तो चक्कर आ रहा है।
अपेक्षा ने तो बाहर देखा तो वह बुढ़ी महिला बाहर बैठकर रो रही थी। अब अपेक्षा से नहीं रहा गया अपेक्षा –अब चाहे जो हो जाये मैं उस बुढ़ी औरत को खाना जरूर खिलाऊँगी। वो थाली में खाना परोस कर ले आयी और बूढ़ी औरत को दे दिया वह औरत बहुत खुश हो गयी और खाने लगी।
बूढी औरत – खाना बहुत स्वादिष्ट है तुमने खाना बहुत अच्छा बनाया। तुम बहुत सुखी रहोगी। और खाना ले आवो बेटी,
अपेक्षा और खाना परोस कर ले आयी। बूढ़ी महिला को पता नहीं कि कितनी भूख लगी थी। खाना खाती ही जा रही थी और माँगती ही जा रही थी। और ले आयो खाना। अपेक्षा दौड़कर अन्दर गयी और खाना ले आयी। थोड़ी ही देर में दाल चावल की पतेली खाली हो गयी। सब्जी रोटी भी वह खा गयी। भूख से बिलबिलाते हुए नवीन ने देखा कि पतेली खाली पड़ी है और कुछ नहीं रह गया है। उसमें नवीन को बहुत जोर से गुस्सा आ गया। और उसने चूल्हे पर बर्तन फेंक कर मारा जिस से चूल्हा टूट गया | यह देख कर अपेक्षा रोने लगी
अपेक्षा – चूल्हा तो टुट गया अब खाना किस पर बनेगा।
बूढी औरत – तुम परेशान न हो बेटी मैं ऐसा चुल्हा बना कर तुम्हें देती हूँ कि वह कभी नहीं भुटेगा उसपर खुब खाना बनाना और कोई भूखा आये तो उसे खुब खिलाना।
और उसने वही से थोड़ी मिट्टी उठायी और अपेक्षा से पानी मांगा उसने मिट्टी गुंधी और एक नया चुल्हा बना कर रख दिया
बूढी औरत – बेटी इस चुल्हे पर खाना बनाओगी न तो मुझे याद करोगी। तुम्हारे यहाँ कुछ नहीं है तुम जिस चीज को बनाना चाहो उसका नाम लेकर इस पतीली पर रख देना।
ऐसा कह कर वह वहाँ से चली गयी। अपेक्षा पतीली चुल्हे पर रखती
अपेक्षा – मैं तो दाल बनाने वाली थी
चुल्हे में लकड़ियाँ अपने आप जलने लगी और खाली पतीली में दाल भर भर कर उबलने लगी। अब तो अपेक्षा बहुत खुश हो गयी । एक मिनट में पतीली में दाल अपने आप बन गयी। उसने दूसरी पतीली चढ़ा दी और बोली
अपेक्षा – मैं तो चावल बनाऊँगी देरी नहीं लगी और चावल भी बन गयी। अब तो अपेक्षा जिस चीज को बनाना चाहती उसी का बस नाम लेती तो बह चीज बनती चली जाती। यह देखकर अपेक्षा के सास ससुर और नवीन बहुत खुश हो गये। वे अपेक्षा की प्रंशसा करने लगे। अब सभी लोग खा रहे थे।
जिसकी जो भी खाने की इच्छा होती वे उसी पकवान का नाम लेता तो अपेक्षा उसे बना देती। अब अपेक्षा की सब लोग बहुत इज्जत करते थे। अब घर का काया कल्प ही बदल गया था।
इतने में बहार से आवाज़ आती है – बेटी मुझ पर थोड़ी दया करो मैं बहुत दु:खी हूँ आज तो लगता है भूख के मारे आज मेरे प्राण निकल जायेंगे।
ऐसा सुन कर सभी घर वाले खुश होते है और अपेक्षा हमेशा की तरह उस मांगने वाले को खाना परोस के दे देती है।