गोपालपुर के एक छोटे से गाँव में रमेशअपने बीवी और बेटे के साथ रहता है। रमेश ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था जिसके कारण उसके पास कोई अच्छी सी नौकरी नहीं है। परिवार का पेट पालने के लिए रमेश रिक्शा चलाया करता था। रमेश काफी गरीब था और उसका एक ही सपना था कि वो अपने बेटे को पढ़ा-लिखा कर एक अच्छे मुकाम पर पहुँचा सके। एक दिन रमेश अपने कमरे में सो रहा होता है। तभी उसे कुछ हलचल की आवाज आती है। उसकी नींद खुल जाती है और वह देखता है कि उसका बेटा सोहन उसके पैन्ट की जेब में कुछ ढ़ूढ़ रहा होता है। रमेश फौरन उठकर सोहन पर चिल्ला कर पूछता है
रमेश – क्या कर रहा है तू,
अपने पिता की आवाज सुनकर सोहन डर जाता है और कहता है
सोहन – पापा वो मैं
सोहन अपनी आँखें नीचे कर लेता है
रमेश – तू चोरी कर रहा था?
अपने पापा को चिल्लाता देख सोहन रोने लगता है।
रमेश – तेरी ऐसी कौन सी इच्छा है जो मैं पूरी नहीं कर पाया। ऐसे कौन से खर्चे है तेरे जिसकी वजह से अपने बाप के पैन्ट से पैसा निकालना पड़ा। मैं सुबह से शाम तक सिर्फ इसलिए मेहनत करता हूँ कि तुझे किसी अच्छे मकाम पर पहुँचा सकूँ। और तू! चोरी सीख रहा है।
रमेश की ऊँची आवाज सुनकर उसकी बीवी सोनिया वहाँ आ पहुँची। और कहती है
सोनिया – क्या हुआ जी क्यों चिल्ला रहे है।
रमेश – पूछ इस नालायक से ये बतायेगा,
सोनिया – क्या हुआ सोहन और तू रो क्यों रहा है।
सोहन कुछ नहीं कहता, बस सिर नीचे किये रोता है
रमेश – ये अपने बाप की जेब साफ कर रहा था।
सोनिया – नहीं जी ऐसा नहीं हो सकता। अरे आपको कुछ गलत फैमी हुई है
रमेश – तो पूछ इससे क्या कर रहा था। और अगर पैसो की जरूरत थी तो मांग लेता। लड़का इतना बड़ा हो गया है कि माँगने में शर्म आती है।
सोनिया – क्या कर रहा था बेटा,
तो सोहन कुछ ना बोला।
रमेश – देखा मुँह नहीं खुल रहा है इसका रंगें हाथो पकड़ा गया है न।
सोनिया – ऐसा क्यों किया बेटा तुझे कुछ चाहिए क्या,
रमेश – और प्यार से पूछो, आरती उतारो इसकी।
ये कह कर रमेश वहां से चला जाता है। और सोनिया सोहन से कहती है।
सोनिया – बेटा क्यों चाहिए थे पैसे।
सोहन – मैं अभी नहीं बता सकता माँ।
सोनिया – अरे अपनी माँ से क्या छुपाना, मैं हूँ न, मैं पैसे दे दूँगी तूझे।
सोहन – आ नहीं माँ इस काम के लिए मैं आपसे या पापा से पैसे नहीं लेना चाहता।
सोनिया – ऐसा क्या काम है
सोहन – मैं अभी नहीं बता सकता मां,
यह कहने के बाद सोहन वहाँ से चला जाता है. उसे रोकने के लिए उसकी मां उसे आवाज लगाती है पर सोहन नहीं रुकता। सोहन घर से निकल जाता है और चलते चलते सोच रहा होता है क्या करूँ आखिर कहा से पाँच सो रुपये का इन्जाम करूँ। मेरे पास वक्त भी तो कम है अगर आज शाम पाँच बजे तक पैसे नहीं मिले तो सब बेकार हो जायेगा। कैसे भी कर के आज शाम से पहले पैसे का इंतज़ाम करना पड़ेगा। सोहन अपनी सोच में खोया होता है। तभी उसका दोस्त हरीश उसे आवाज देकर बुलाता है
हरीश – सोहन तू यहाँ क्या कर रहा ।
सोहन – भाई वैसे परेशान हूँ मैं
हरीश – अरे भाई के होते हुए परेशान क्या बात है बता। क्या बताए परेशानी दूर कर देगा। दूर तो नहीं कर पाऊँगा पर दूर करने का रास्ता बता सकता हूँ
सोहन – मुझे आज शाम से पहले पाँच सौ रुपये चाहिए और मुझे पाँच सौ रुपये कमाने है। अच्छा देख एक तरीका तो है पर तू कर नहीं पायेगा।
सोहन – बता बता मैं कर लूंगा, मेहनत का काम है भाई।
सोहन – जीतनी भी मेहनत हो मैं कर लूँगा।
हरीश – अच्छा मार्केट चल बताता हूँ।
रमेश और सोनिया शाम को घर के कुछ सामान लेने जाते है। और वे रास्ते में सोहन के ही बारे में बात करते है।
रमेश – क्या लगता है सोहन पैसे क्यों ले रहा था।
सोनिया – पता नहीं जी,
रमेश – तुम तो उससे बात करने वाली थी न।
सोनिया – हाँ पर उसने कुछ बताया ही नहीं, वो बोला कि कुछ काम करना है,
रमेश – तुमने कुछ पूछा नहीं क्या काम।
सोनिया – पूछा पर उसने बताया नहीं वो बोला अभी बता नहीं सकता।
रमेश – ऐसा क्या है जो बता नहीं सकता। कहीं वो किसी गलत काम में तो नहीं पड़ गया?
सोनिया – नहीं जी मुझे अपने बेटे पर पूरा भरोसा है किसी गलत काम में तो नहीं होगा वो।
रमेश – हाँ भरोसा मुझे भी है पर ये दुनिया मासूम नहीं रही। हम गरीबों को ऐसे कामों में घूसा देती है जहाँ हम जाना नहीं चाहते है।
सोनिया – नहीं जी आप बेकार ही परेशान हो रहे है। ऐसा कुछ नहीं है।
रमेश ( भावुक ) – सही कहती हो। मैं भी बिना जाने उसके ऊपर चिल्ला रहा था। वो चोरी कर रहा था क्योंकि मैं उसकी इच्छाएँ पूरी नहीं कर पा रहा था।
सोनिया – ऐसा कुछ नहीं है जी, आप कुछ ज्यादा ही सोचते है
वो दोनों आगे चलते है कि रमेश अचानक रुक जाता है। उसे देख सोनिया भी रुक जाती है और पूछती है
सोनिया – अरे क्या हुआ क्यों रुक गये
रमेश – वो देखो
सोनिया देखती है तो चौक जाती है क्योंकि सोहन फैक्टरी से भरे हुए बोरे ट्रक में चढ़ा रहा होता है। ये देखकर रमेश रोने लगता है और वह वहाँ से चले जाता है। सोनिया भी उसके पीछे चली जाती है।
सोनिया – रुकिये जी
रमेश ( भावुक ) – इससे अच्छा कि मैं उसे पैसे निकालने देता।
सोनिया – जब वो घर आयेगा तो उससे बात करेंगे ना।
रमेश ( भावुक ) – क्या बात करेंगे। ये पूछेगी की वह काम क्यों कर रहा है। क्योंकि उसका बाप उसकी जरूरत पूरी नहीं कर पाता।
सोनिया – ऐसा नहीं है जी।
सोनिया रमेश को समझाने की कोशिश करती है वो एक नहीं सुनता वह घर चले जाता है। रात का वक्त है रमेश और सोनिया सोहन का इन्तजार कर रहे होते है।
रमेश – ये लड़का अभी तक आया क्यों नहीं।
सोनिया – आता ही होगा अभी परेशान न हो।
रमेश – अरे कैसे परेशान न होऊ।
वो ये सब बातें कर रहे होते है तभी सोहन वहाँ आ जाता है। और जोर से कहता है हैप्पी बर्थ डे मां और पापा। सोहन की आवाज सुनकर रमेश और सोनिया चौंक जाते है। सोहन के हाथ में एक केक होता है और वह कहता है।
सोहन – याद है मैंने आपसे पूछा था कि आप का जन्मदिन कब है। तो आपने कहा था के हमारा जन्मदिन एक सितम्बर को आता है और आज एक सितम्बर है। और मैंने आपको वादा किया था के मैं आपका जन्मदिन मनाऊँगा।
ये सुनकर रमेश सोहन को गले से लगा लेता है
रमेश – तू हमारे लिए ये सब कर रहा था और मैं तुम्हारे ऊपर इतना चिल्लाया मुझे माफ कर दे बेटा,
सोहन – अरे पापा ऐसा कुछ मत कहिये, चलिये केक काँटते है।
और उसका पूरा परिवार मिलकर केक काटता है और खुब मस्ती करते है।