भाई और बहन के प्यार के त्योहार को रक्षाबंधन कहते है। इस त्योहार के नाम में ही इसका मतलब है रक्षा + बंधन – रक्षाबंधन। इस दिन भाई अपने बहन को सारी जिंदगी परेशानियों से बचा कर रखने का वादा करता है. यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन कई साल पुराना बताया जाता है।
पहले समय में गुरु शिष्य परंपरा में शिष्य इस दिन अपने गुरुओं को रक्षासूत्र बांधा करते थे। इस त्योहार की शुरुआत सगे भाई-बहनों ने नहीं की थी। इस त्योहार से संबंधित कई कथाएं पुराणों में मौजूद हैं
इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहभाव दर्शाते हैं। त्योहारों की वजह से भारत को त्योहारों और उत्सव की धरती भी कहा जाता है।
महाभारत में रक्षाबंधन का उल्लेख
महाभारत में भी रखबंधन का उल्लेख मिलता है, जब युधिष्ठिर कौरवों से युद्ध के लिए जा रहे थे । तो वह श्री कृष्ण के पास गए और बोले के हे श्री कृष्ण मैं इस युद्ध मैं कैसे विजय प्राप्ति करू? तब श्री कृष्ण ने उन्हें सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधने की बात कही। उन्होंने कहा कि इस रक्षासूत्र से हर सैनिक का मनोबल बढ़ेगा और इस विश्वास से हर सैनिक हर परेशानी से मुक्ति पा सकता है। इसके बाद श्रीकृष्ण के कहने के अनुसार युधिष्ठिर ने अपने हर एक सैनिक की कलाई पर रक्षासूत्र बंधा और आखिर मैं उन्हें जीत भी मिली । यह घटना भी सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर ही घटित हुई मानी जाती है। कथा अनुसार मान्यता है कि जिस दिन युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को रक्षासूत्र बांधा वह भी श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था।
द्रौपदी ने श्री कृष्ण को बंधी राखी
रक्षाबंधन की कहानी श्री कृष्ण और द्रौपदी को लेकर फिर से महाभारत कल में ही मिलती है । इंद्रप्रस्थ में शिशुपाल से युद्ध के दौरान जब भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध करने के लिए सुदर्शन चक्र चलाया। तब भगवन श्रीकृष्ण की उंगली थोड़ी कट गई और खून बेहने लगा । यह देख द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवन कृष्ण के घाव पर लपेट दिया । और उनके खून का बहना रुक गया, यह सब देख श्री कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह इस पल्लू के एक एक धागे का भविष्य में अवश्य ऋण चुकाएंगे ।
इतिहास गवाह है जब कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया तो श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज रखी । कहते है जब द्रौपदी ने साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवन कृष्ण के घाव पर लपेटा था वह भी श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था।
हुमायूं ने निभाया था राखी का वचन
रक्षाबंधन की एक और मिसाल । पहले के समय में राजस्थान में जब राजपूत युद्ध पर जाते थे तब उनके परिवार की महिलाएं उनके माथे पर तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में धागा भी बांधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हें हरेक परेशानी से दूर रखेगा और विजय के साथ वापस ले आएगा।
मुग़ल सम्राट हुमायूं और राजपूत रानी कर्णावती की ये कहानी भाई बहन के प्यार का प्रतीक है। एक समय जब राजपूत व मुस्लिमों के बीच युद्ध चल रहा था तब रानी कर्णावती चित्तौड़ के राजा की विधवा थीं। उस दौरान रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी थी। हुमायूं इस परंपरा को अच्छे से जानता था इसलिए उसने इस परम्परा की इज्जत रखते हुए हूमायूं ने रानी कर्णावती को अपनी बहन का दर्जा दिया और उम्रभर रक्षा का वचन दिया।
दूसरी तरफ हूमायूं एक निरदई राजा था वह किसी को भी नहीं बख्शता था । लेकिन वह रानी का भेजा धागा देख भावुक हो गया और उसने तुरंत अपने सैनिकों को युद्ध बंद करने का आदेश दिया।