कई साल पहले एक राक्षस हुआ करता था। जिसका नाम था महिषासुर वे राक्षस देखने में तो असुर था लेकिन उसमें एक दिव्य शक्ति थी वो बहुत शक्तिशाली था और पाताल स्वर्ग और पृथ्वी तीनो लोको को जीतना चाहता था। इस सब को पाने के लिए उसने भगवान ब्रह्मा की कड़ी तपस्या की
महिषासुर- ओम् हैम हीं श्रीं क्रीम क्लीं स्वाहसत चित एकम् ब्रह्मा
उसने एक ऊँचे पर्वत पर एक टांग पर खड़े होकर कई साल तपस्या की और इसी दौरान उसने हर तरह की तकलीफो झेला चाहे वो तेज बारीश हो तूफान हो बर्फ हो और चाहे कड़ी धूप हो ये सब देख कर भगवान खुश हुये और आखिरकार उस सच्चे राक्षस के सामने प्रकट हुए
भगवान ब्रह्मा बोले- आँखे खोलो महिषासुर माँगो, क्या माँगना चाहते हो
महिषासुर- मुझे इतना शक्तिशाली बना दो कि कोई भी मुझे मार ना पाये
भगवान ब्रह्मा- पुत्र, हर जीवन का अंत सुनिश्चत हैं मैं तुम्हें ऐसा वरदान नही दे सकता
महिषासुर- ठीक हैं तो मुझे ना कोई देवता ना कोई दानव और ना ही कोई मानव मार पाये अगर मुझे कोई मार पाये तो वो एक स्त्री हो
भगवान ब्रह्मा- तथास्तु
वर प्राप्ति के बाद महिषासुर ने पाताल और मृत्यु लोक पर धावा बोल दिया सभी प्राणी उसके आधीन हो गये कुछ समय बाद उसने इन्द्र लोक पर हमला बोल दिया और सभी देवताओं को वहाँ से भगा दिया परेशान देवताओं ने जा कर अपना दुःख ब्रह्मा विष्णु महेश को बताया ये सब सुने के बाद त्रिमूर्ति ने दुर्गा देवी की रचना की शिव विष्णु ब्रह्मा और इन्द्र ने अपने त्रिशूल सुर्दशन चक्र और कमण्डल और व्रज को उनको दिया और हिमवन्दे ने उनकी सवारी के लिये शेर दिया
माँ दुर्गा ने कहा- मैं उस राक्षस का वध करके ही लौटूंगी
फिर क्या था माँ दुर्गा ने हिमालय के शिखर से महिषासुर को जैसे ही जोर से पुकारा अन्य राक्षसो ने माँ दुर्गा पर आक्रमण कर दिया माँ दुर्गा ने सभी राक्षसो को पराजीत कर दिया ये सब देख कर महिषासुर को और गुस्सा आ गया उसने माँ दुर्गा पर आक्रमण कर दिया बस इसी मौके का इन्जार कर रही माँ दुर्गा ने महिषासुर के साथ युद्ध आरम्भ कर दिया ये युद्ध नौ दिन तक चला और अन्त में माँ दुर्गा ने महिषासुर को मार गिराया ये देखकर सभी देवी-देवता प्रशंय हो गये। और उन्होने माँ दुर्गा पर फूलो की बारीश की इसी प्रकार से उनका नाम महिषासुरमर्दनी के नाम से जाना जाने लगा।
बुराई पर अच्छाई की जीत हुई और हर साल हम इस जीत को दुर्गा पूजा के रुप में मनाते आ रहे हैं। इस दिन भगवान राम रावण का भी वध किया था जिसे हम दशहरा के रुप में मनाते हैं
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